पुणे न्यूज डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पुणे में गणपति विसर्जन और उत्सव के दौरान ढोल-ताशा समूह में शामिल लोगों की संख्या 30 तक सीमित की गई थी। इसका मतलब है कि अब ढोल-ताशा समूह में 30 से अधिक लोग शामिल हो सकेंगे। एनजीटी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट की रोक से ढोल-ताशा समूहों को राहत मिली है और वे अब पहले की तरह अपने कार्यक्रम आयोजित कर सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं, ने पुणे के 'ढोल-ताशा' समूह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है। यह याचिका एनजीटी के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई है जिसमें गणपति विसर्जन और उत्सव के दौरान ढोल-ताशा समूह में लोगों की संख्या 30 तक सीमित की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य प्राधिकारियों को नोटिस जारी कर दिया है और दोपहर दो बजे सुनवाई करने का निर्णय लिया है।
वकील अमित पई ने बताया कि पुणे में 'ढोल-ताशा' की परंपरा एक सदी से अधिक पुरानी है और इसकी शुरुआत महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के 30 अगस्त के आदेश से ऐसे सांस्कृतिक समूहों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो गणपति उत्सव के दौरान ढोल-ताशा का आयोजन करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "हम नोटिस जारी कर रहे हैं। अगली सुनवाई तक एनजीटी के निर्देश संख्या 4 (ढोल-ताशा समूहों में व्यक्तियों की संख्या पर) के क्रियान्वयन पर रोक रहेगी। उन्हें अपना 'ढोल ताशा' करने दें। यह पुणे का दिल है।" इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने ढोल-ताशा समूहों पर लगाई गई पाबंदी को अगली सुनवाई तक के लिए हटा दिया है और उन्हें अपने कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दी है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए गणपति उत्सव के दौरान ढोल-ताशा बजाने वाले समूहों में लोगों की संख्या 30 तक सीमित कर दी थी। इसके अलावा, एनजीटी ने पुणे पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि प्रत्येक समूह में लोगों की संख्या 30 से अधिक न हो। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब इस आदेश पर रोक लगा दी है और ढोल-ताशा समूहों को अपने कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दे दी है।