पुणे न्यूज डेस्क: महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है और इस बार वजह हैं शरद पवार और अजित पवार। सवाल उठ रहा है – क्या ये दोनों एक बार फिर साथ आ सकते हैं? एनसीपी के स्थापना दिवस से पहले दोनों खेमों की गतिविधियां इस अटकल को और हवा दे रही हैं। अजित पवार खेमे के नेता अमोल मिटकरी ने हाल ही में बयान दिया कि अगर भगवान पांडुरंग की इच्छा हुई, तो अजित और सुप्रिया आषाढ़ी एकादशी से पहले साथ आ जाएंगे। शरद पवार भी कह चुके हैं कि पार्टी में दो मत हैं – एक फिर से अजित को साथ लाने के पक्ष में है, तो दूसरा भाजपा से दूरी बनाए रखने की बात करता है।
सुप्रिया सुले ने दिया साफ संकेत
शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने एनसीपी की विरासत की तारीफ करते हुए भले ही पार्टी की एकजुटता को सराहा हो, लेकिन उन्होंने विलय की अटकलों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ अटकलबाज़ी है और फिलहाल ऐसा कोई प्लान नहीं है। हालांकि, दोनों खेमे इस मुद्दे पर सावधानी बरत रहे हैं – कोई भी खुलकर कुछ कह नहीं रहा। अजित पवार गुट ने साफ कहा कि अगर दूसरा पक्ष औपचारिक प्रस्ताव देगा, तभी आगे विचार होगा।
एक शहर, दो कार्यक्रम – पुणे बना सियासी अखाड़ा
10 जून को एनसीपी के 26वें स्थापना दिवस पर शरद पवार और अजित पवार दोनों पुणे में अलग-अलग कार्यक्रम करने जा रहे हैं। सुबह शरद पवार अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे, तो शाम को अजित पवार अपनी ताकत दिखाएंगे। पुणे वही शहर है जिसे पवार परिवार का राजनीतिक गढ़ माना जाता है। ऐसे में एक ही दिन, एक ही शहर में दोनों गुटों का शक्ति प्रदर्शन साफ इशारा है कि दूरी के बावजूद दोनों की निगाहें एक-दूसरे पर हैं।
समीकरण बदल सकते हैं, अगर सुलह हुई तो...
अगर पवार परिवार में सुलह होती है, तो महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो सकता है। खासकर तब जब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने की बातें भी चल रही हैं। ऐसे में शिंदे गुट को मराठी वोट बैंक में दिक्कत हो सकती है। चुनौती यह है कि क्या सत्ता में बैठा अजित गुट मौजूदा गठबंधन से अलग होगा या शरद पवार ही धीरे-धीरे भाजपा की ओर बढ़ेंगे? इस सियासी शतरंज की चालें अभी जारी हैं, और पूरे महाराष्ट्र की नज़र अब पुणे की तरफ़ है।