पुणे न्यूज डेस्क: अडॉप्शन से जुड़े एक संवेदनशील मामले में बड़ा फैसला हो सकता है, जहां अवैध रूप से गोद लिए गए बच्चों को उनके जैविक माता-पिता या दत्तक परिवारों को लौटाने की प्रक्रिया पर विचार किया जा रहा है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद, इन बच्चों की भावनात्मक बॉन्डिंग की जांच की जाएगी, ताकि सही फैसला लिया जा सके।
इस मामले में लगभग 15 बच्चे शामिल हैं, जिन्हें बाल तस्करों के जरिए दिल्ली और पुणे में 5-8 लाख रुपये में बेचा गया था। इन बच्चों को हैदराबाद पुलिस ने करीब छह महीने पहले एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ कर रेस्क्यू किया था। फिलहाल ये सभी बच्चे तेलंगाना सरकार के आश्रय गृहों में रह रहे हैं।
रेस्क्यू किए गए बच्चों की उम्र सात महीने से चार साल के बीच है। इनमें से कई बच्चे पहले से ही अपने दत्तक माता-पिता के साथ 2-3 साल तक रह चुके थे। रेस्क्यू के बाद से वे अपने दत्तक परिवारों से अलग हैं, जिससे उनका भविष्य अनिश्चित बना हुआ है।
यह मामला तेलंगाना हाई कोर्ट पहुंचा, जहां गंभीर विचार-विमर्श के बाद मेडचल-मलकाजगिरी बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को बच्चों और दत्तक परिवारों के बीच भावनात्मक जुड़ाव का मूल्यांकन करने का निर्देश दिया गया। सीडब्ल्यूसी ने इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए विशेष बॉन्डिंग सत्र आयोजित करने का फैसला किया है।
सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष ए एम राजा रेड्डी ने बताया कि बच्चों और दत्तक माता-पिता को एक कमरे में रखा जाएगा। सत्र के दौरान बच्चों और परिवारों के बीच भावनात्मक जुड़ाव देखा जाएगा। यदि जुड़ाव पर्याप्त पाया गया, तो बच्चों को उनके दत्तक माता-पिता के पास भेजने पर विचार किया जाएगा।
राजा रेड्डी ने कहा कि यह निर्णय मानवीय आधार पर लिया जा रहा है। चूंकि बच्चे पहले से ही अपने दत्तक परिवारों के साथ रह चुके हैं, इसलिए उनकी भावनात्मक स्थिति को समझना जरूरी है। यह अभ्यास वीकेंड पर हैदराबाद के उपनगर अलवाल स्थित एक सरकारी कार्यालय में आयोजित किया जाएगा।
इस मामले ने अडॉप्शन प्रक्रिया और बच्चों के अधिकारों को लेकर नई बहस छेड़ दी है। कानूनी और बिहेवियरल विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि यह प्रक्रिया बच्चों और परिवारों दोनों के लिए मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है। हाई कोर्ट के इस फैसले का असर देश में अडॉप्शन कानूनों पर भी पड़ सकता है।