पुणे न्यूज डेस्क: पुणे शहर कांग्रेस में गुटबाजी और अंदरूनी कलह लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाळ की हालिया एकता अपील भी बेअसर साबित हो रही है। उन्होंने आगामी नगर निगम चुनावों के मद्देनजर पार्टी को एकजुट होने और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देने की सलाह दी थी, लेकिन इसके उलट शहर अध्यक्ष पद को लेकर पुराने मतभेद फिर से उभर आए हैं।
कांग्रेस में लंबे समय से स्थायी शहर अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर विवाद चल रहा है। एक गुट कार्यकारी अध्यक्ष अरविंद शिंदे के समर्थन में है, जबकि पूर्व विधायक रमेश बागवे और मोहन जोशी के नेतृत्व वाला दूसरा गुट शिंदे के स्थायी नियुक्ति का विरोध कर रहा है। दोनों गुटों ने अब राज्य स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए लॉबिंग तेज कर दी है, जिससे पार्टी में अंतर्कलह और गहरा गई है।
अरविंद शिंदे जून 2022 से कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं और इस दौरान उन्होंने कई अहम चुनावों की अगुवाई की, जिनमें विधानसभा उपचुनाव भी शामिल हैं। हालांकि, पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली, और शिवाजीनगर व कसबा पेठ जैसे क्षेत्रों में बगावत को रोकने में भी वे नाकाम रहे। उनके विरोधी इन्हीं असफलताओं को आधार बनाकर नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं और शिंदे गुट पर पार्टी को कमजोर करने के आरोप लगा रहे हैं।
दूसरी ओर, शिंदे के समर्थक चाहते हैं कि उन्हें स्थायी अध्यक्ष बनाया जाए, ताकि चुनावी तैयारियों को स्थिर और प्रभावी नेतृत्व मिल सके। लेकिन गुटबाजी के चलते कांग्रेस आंतरिक कलह में उलझी हुई है, जिससे नगर निगम चुनावों की तैयारी पर भी असर पड़ रहा है। पार्टी का यह अंदरूनी संघर्ष बाहरी चुनौतियों से निपटने की बजाय खुद को कमजोर करने का कारण बनता जा रहा है।