पुणे न्यूज डेस्क: पंढरपुर की ओर बढ़ती भक्ति की पगडंडी एक बार फिर जीवन्त हो उठी है, जब लाखों वारकरी भक्त आषाढ़ी वारी की ऐतिहासिक पदयात्रा में शामिल होकर विठ्ठल नाम की गूंज के साथ पुण्य नगरी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। यह सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन चुकी है। संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव और एकनाथ जैसे संतों की इस परंपरा ने इसे भक्ति और लोकजागरण का माध्यम बना दिया है। जाति-धर्म की सीमाओं से परे, यह वारी हर साल लाखों लोगों को भक्ति और भाईचारे के सूत्र में पिरो देती है।
इस बार महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने भी इस परंपरा को अपनाते हुए वारी में शामिल होने का निर्णय लिया है। वे 24 जून को दिंडी क्रमांक 282 के साथ पुणे-सोलापुर हाइवे पर यावत गांव से सुबह 7 बजे पैदल यात्रा शुरू करेंगे और वरवंड तक विठ्ठल नाम का संकीर्तन करते हुए चलेंगे। सपकाल ने इसे सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं बल्कि महाराष्ट्र की संस्कृति के साथ जुड़ने का अवसर बताया है, जिसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना जरूरी है।
आषाढ़ी वारी न केवल भक्ति का मार्ग है, बल्कि यह समाज को एक सूत्र में जोड़ने का रास्ता भी है। भक्त विठ्ठल को "सावला विठु" के रूप में अपना मित्र मानते हैं और यह यात्रा उनके आध्यात्मिक जुड़ाव का प्रतीक बनती है। सपकाल का कहना है कि इस परंपरा को सहेजना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है। यह वारी भक्ति के साथ-साथ प्रेम, सहयोग और सौहार्द की मिसाल है, जो समाज को हर साल एक नई ऊर्जा और दिशा देती है।