पुणे न्यूज डेस्क: बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के रहने वाले 33 वर्षीय किसान को दहेज मांगने और पत्नी से मारपीट करने के आरोप में निचली अदालतों द्वारा दी गई सजा से बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शादी के समय चांदी की थाली में खाना न परोसे जाने से व्यक्ति का नाराज़ होना एक अस्थायी मामला था, इसे दहेज की मांग नहीं माना जा सकता। हाई कोर्ट ने यह भी देखा कि बाद में पति-पत्नी ने साथ में सुखपूर्वक जीवन बिताया, जिससे साबित होता है कि आरोप पूरी तरह प्रमाणित नहीं हो सके।
इससे पहले आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (पति या ससुराल पक्ष द्वारा स्त्री के साथ क्रूरता), धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया गया था। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उसे दो साल की सख्त सजा और ₹500 जुर्माना सुनाया था, जबकि परिवार के अन्य सदस्यों को बरी कर दिया गया था। सेशंस कोर्ट ने भी यह फैसला बरकरार रखा था।
प्रॉसिक्यूशन का आरोप था कि आरोपी और उसके परिवार ने सरकारी क्लर्क के पद पर कार्यरत पत्नी को दो साल तक मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। आरोपों में शादी के समय चांदी की थाली, सोने की अंगूठियां और अन्य सामान की मांग शामिल थी। एक घटना का हवाला देते हुए आरोप लगाया गया कि जब पत्नी ने बासी चावल फेंक दिया, तो पति ने इतनी बुरी तरह पीटा कि वह बेहोश हो गई और अस्पताल में भर्ती करानी पड़ी।
हालांकि, आरोपी के वकीलों अमित इचम और चैतन्य पुरणकर ने इसे झूठा फंसाने का मामला बताया और मेडिकल सबूतों व गवाहों के बयानों में विरोधाभास उजागर किया। जस्टिस शिवकुमार डिजे ने अपने फैसले में कहा कि इलाज कराने वाले डॉक्टर की गवाही से यह साबित नहीं होता कि हमला दहेज की मांग के कारण हुआ। उन्होंने कहा कि मामले में कोई स्वतंत्र गवाह भी नहीं था जो दहेज मांगने के आरोपों की पुष्टि कर सके। हाई कोर्ट ने निचली अदालतों पर यह भी टिप्पणी की कि उन्होंने ऐसे मामलों में जरूरी ठोस सबूतों की अनदेखी की।