पुणे न्यूज डेस्क: पुणे की 40 एकड़ सरकारी जमीन घोटाले पर जांच रिपोर्ट आ चुकी है, और इसमें बड़ा खेल साफ-साफ सामने आया है। सरकारी जमीन, जिसे किसी निजी कंपनी को बेचना ही नहीं था, अमाडिया एंटरप्राइजेज LLP के नाम रजिस्ट्री कर दी गई। हैरानी की बात ये कि रजिस्ट्री करते समय 21 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी भी माफ कर दी गई—वो भी बिना किसी मंजूरी के। लगातार उठते सवालों के बीच संयुक्त IGR ने तीन सदस्यीय कमेटी बनाई, और अब उसकी रिपोर्ट ने पूरे मामले की परतें खोल दी हैं।
जांच कमेटी, जिसकी अगुवाई राजेंद्र मुंठे ने की, ने तीन लोगों को सीधे तौर पर जिम्मेदार बताया है—सब रजिस्ट्रार रविंद्र तारू (जो अब सस्पेंड हैं), दिग्विजय पाटिल और शीटल तेजवानी। दिग्विजय पाटिल पार्थ पवार के रिश्तेदार और बिजनेस पार्टनर हैं, जबकि तेजवानी सेलर्स की पावर ऑफ अटॉर्नी संभाल रही थीं। ये तीनों पहले ही FIR में आरोपी हैं। रिपोर्ट में यह भी साफ लिखा गया है कि पार्थ पवार का नाम किसी भी दस्तावेज में नहीं मिला, इसलिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
रिपोर्ट के मुताबिक जमीन बेचने की प्रक्रिया में कई गंभीर नियम तोड़े गए—स्टांप ड्यूटी में छूट देने के लिए कलेक्टर की मंजूरी जरूरी थी पर ली ही नहीं गई। जमीन के 7/12 जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज अपडेट नहीं थे। 20 अप्रैल 2025 के सरकारी आदेश के हिसाब से सरकारी जमीन का रजिस्ट्रेशन सब रजिस्ट्रार नहीं कर सकता, फिर भी यही किया गया। यानी कई स्तरों पर सिस्टम को धोखा देकर रजिस्ट्री कराई गई।
कमेटी ने आगे के लिए कई सुझाव भी दिए—जहां स्टांप छूट मांगी जाए वहां कलेक्टर की मंजूरी अनिवार्य हो, पुराने या अधूरे जमीन दस्तावेज स्वीकार न किए जाएं, और सरकारी जमीन पर लागू नियम आंशिक सरकारी स्वामित्व वाली जमीनों पर भी लागू हों। इसी बीच, IGR ऑफिस ने अमाडिया एंटरप्राइजेज LLP को 42 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी वापस जमा करने का नोटिस दे दिया है। कंपनी ने 15 दिन मांगे, पर विभाग ने सिर्फ 7 दिन दिए। अब राजस्व विभाग और सेटलमेंट कमिश्नर की रिपोर्ट भी तैयार हो रही है, जिसकी अंतिम प्रतियां अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास खर्गे को भेजी जाएंगी।