पुणे न्यूज डेस्क: महाराष्ट्र के चर्चित पुणे जमीन सौदे को लेकर उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने शनिवार को पहली बार खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने साफ कहा कि इस पूरे मामले में गलती उन अधिकारियों की है, जिन्होंने कानून के खिलाफ दस्तावेजों का पंजीकरण किया। अजित पवार का कहना था कि यदि कोई समझौता नियमों के अनुरूप नहीं था, तो उसे उसी वक्त खारिज कर दिया जाना चाहिए था और संबंधित पक्षों को स्पष्ट रूप से इसकी जानकारी दी जानी चाहिए थी।
यह बयान ऐसे समय आया है, जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमीन सौदे की पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की थी कि पार्थ पवार का नाम एफआईआर में न होना संदेह पैदा करता है। अदालत ने कहा था कि इससे ऐसा प्रतीत हो सकता है कि जांच में किसी को संरक्षण दिया जा रहा है। इसी सौदे में पार्थ पवार की कंपनी अमाडिया एंटरप्राइजेज एलएलपी को पुणे के मुंधवा इलाके की 40 एकड़ जमीन 300 करोड़ रुपये में बेचने का मामला सामने आया था, जिस पर 21 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी और जुर्माने का नोटिस जारी हुआ है।
अजित पवार ने यह भी स्पष्ट किया कि हाल ही में पारित बिल का उद्देश्य किसी खास व्यक्ति या उनके बेटे को राहत देना नहीं है। उन्होंने कहा कि अब तक ऐसे मामलों में शिकायतकर्ताओं को केवल हाईकोर्ट का ही रास्ता अपनाना पड़ता था, लेकिन नए कानून के तहत वे सीधे राजस्व मंत्री के पास अपनी बात रख सकते हैं। उनका तर्क था कि इससे प्रशासनिक स्तर पर मामलों का समाधान जल्दी और प्रभावी ढंग से हो सकेगा।
इस सौदे में पार्थ पवार की 99 प्रतिशत हिस्सेदारी जरूर बताई जा रही है, लेकिन जांच एजेंसियों का कहना है कि किसी भी आधिकारिक दस्तावेज में उनका नाम दर्ज नहीं है। इसी वजह से एफआईआर में उनके बजाय दिग्विजय पाटिल, पावर ऑफ अटॉर्नी धारक शीतल तेजवानी और उप-रजिस्ट्रार रविंद्र तरु को आरोपी बनाया गया है। वहीं राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले का कहना है कि इस लेनदेन से राज्य को आर्थिक नुकसान हुआ, इसलिए कानूनी रूप से मजबूत समाधान के लिए यह बिल जरूरी था।