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जिलों में स्कूल-कॉलेज आज भी बंद, सड़कों-दुकानों पर सामान्य दिखे हालात

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Posted On:Monday, May 12, 2025

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहा तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया है। भारतीय वायुसेना द्वारा ऑपरेशन सिंदूर की घोषणा के बाद हालात में गंभीरता बढ़ गई है। भारतीय सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि यह ऑपरेशन जारी रहेगा और इसके तहत पहले चरण के टारगेट्स सफलतापूर्वक हासिल कर लिए गए हैं। आने वाले दिनों में आगे की रणनीति सार्वजनिक की जाएगी। इस बीच, 12 मई को दोपहर 12 बजे भारत और पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) के बीच महत्वपूर्ण बातचीत होने जा रही है, जिससे उम्मीद की जा रही है कि कुछ तनाव कम हो सकता है।

ऑपरेशन सिंदूर: एक निर्णायक कदम

भारतीय वायुसेना ने 7 मई से ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान की ओर से हो रही लगातार गोलीबारी, घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों का जवाब देना है। इस अभियान के दौरान अब तक पाकिस्तान की कार्रवाई में भारत के 7 जवान शहीद हो चुके हैं, जिनमें 5 सशस्त्र बलों से और 2 बीएसएफ के जवान शामिल हैं। इसके अलावा, करीब 60 जवान घायल हैं और 27 आम नागरिकों की जान जा चुकी है।

भारतीय वायुसेना ने देशवासियों से अपील की है कि वे अफवाहों पर ध्यान न दें और सिर्फ आधिकारिक सूचनाओं पर विश्वास करें। सेना का कहना है कि यह अभियान आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो टॉलरेंस नीति का हिस्सा है।

मोदी सरकार का सख्त रुख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि नया भारत आतंकवाद और सीमा पार से हो रही किसी भी प्रकार की गतिविधि को बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि यह भारत अब गोली का जवाब गोले से देने में हिचकिचाएगा नहीं। यह रुख सिर्फ एक सख्त सैन्य नीति का परिचायक नहीं, बल्कि भारत की बदलती हुई रणनीतिक सोच को भी दर्शाता है, जिसमें कूटनीति के बजाय प्रत्यक्ष कार्रवाई को प्राथमिकता दी जा रही है।

DGMO स्तर की बैठक: कूटनीति की आखिरी डोर

12 मई को होने वाली DGMO बैठक भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा दौर में एकमात्र आधिकारिक संपर्क चैनल है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक या कूटनीतिक स्तर पर कोई बातचीत नहीं होगी। केवल DGMO स्तर की वार्ता ही होगी और इसमें कोई तीसरा देश शामिल नहीं होगा। सूत्रों के अनुसार, भारत का मानना है कि जब तक पाकिस्तान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं करता, तब तक कूटनीति की कोई गुंजाइश नहीं है।

सीमावर्ती इलाकों में लौट रही सामान्य स्थिति

राजस्थान, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और गुजरात जैसे सीमावर्ती राज्यों में अब धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होती दिख रही है। बीती रात तक कई इलाकों में ब्लैकआउट रहा, विशेषकर राजस्थान के बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर और श्रीगंगानगर में, लेकिन आज सुबह चहल-पहल दिखी। स्थानीय बाजार और मानवीय गतिविधियां फिर से शुरू हो गई हैं। हालांकि एहतियातन स्कूल और कॉलेज आज भी बंद रखे गए हैं।

जम्मू-कश्मीर में भी हालात आज सुबह सामान्य दिखे। लोग अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त नजर आए और बीती रात कोई गोलीबारी या गोलाबारी नहीं हुई, जिससे यह उम्मीद जगी है कि हालात कुछ हद तक नियंत्रण में हैं।

प्रवासी मजदूरों में डर का माहौल

सीजफायर और सीमावर्ती इलाकों में सामान्य स्थिति के बावजूद, उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में पंजाब से अपने घरों को लौटने लगे हैं। जालंधर, अमृतसर, लुधियाना और पठानकोट रेलवे स्टेशनों पर सुबह से ही मजदूरों की भीड़ नजर आई। उनका कहना है कि वे अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।

इस प्रवास का असर पंजाब में 1 जून से शुरू होने वाले धान के सीजन पर पड़ सकता है। किसानों को मजदूरों की भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है, जिससे फसलों की बुवाई प्रभावित हो सकती है। साथ ही, कमर्शियल इंडस्ट्री को भी श्रमिकों की कमी के कारण नुकसान उठाना पड़ सकता है।

विपक्ष की मांग: ऑल पार्टी मीटिंग और विशेष संसद सत्र

विपक्ष ने भी इस मामले में अपनी भूमिका निभाते हुए प्रधानमंत्री मोदी से ऑल पार्टी मीटिंग बुलाने और संसद का विशेष सत्र आयोजित करने की मांग की है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सांसद राहुल गांधी ने इस संबंध में प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है। विपक्ष का मानना है कि इस समय देश को एकता की जरूरत है और हर राजनीतिक दल को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष: आने वाला समय निर्णायक

भारत-पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव किसी सामान्य सीमा विवाद से कहीं अधिक गहराई लिए हुए है। भारत की नीति स्पष्ट है – आतंकवाद के खिलाफ कोई नरमी नहीं बरती जाएगी। वहीं, पाकिस्तान की ओर से फिलहाल कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है।

आज दोपहर की DGMO बैठक इस पूरी स्थिति में एक अहम मोड़ साबित हो सकती है। अगर इसमें कुछ ठोस सहमति बनती है, तो सीमावर्ती इलाकों में राहत मिल सकती है। लेकिन अगर वार्ता विफल रही, तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है। ऐसे में देशवासियों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें इस बैठक के नतीजों पर टिकी हैं।


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