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ताइवान में चीन की फिर घुसपैठ की कोशिश, दावा- समुद्र में देखे गए लड़ाकू विमान और 5 नेवी शिप

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Posted On:Monday, July 21, 2025

चीन और ताइवान के बीच तनाव चरम पर पहुंच चुका है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय (MND) ने 21 जुलाई को एक ताजा घटनाक्रम की जानकारी दी है, जिसमें चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के एक लड़ाकू विमान और पांच नौसेना जहाजों ने ताइवान के समुद्री क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की। इस लड़ाकू विमान ने ताइवान स्ट्रेट की मध्य रेखा (मेडियन लाइन) को पार करते हुए ताइवान के नॉर्थ एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन (ADIZ) में प्रवेश किया। ताइवान की सेना ने तत्काल जवाबी कार्रवाई करते हुए चीन की इस घुसपैठ को रोकने का प्रयास किया।

यह घटनाक्रम ताइवान के लिए बड़ा चिंता का विषय है, क्योंकि यह सिर्फ एक बार नहीं हुआ है। पिछले दो महीनों में चीन की सेना ने ताइवान के सीमावर्ती इलाकों में तीन बार इस तरह की घुसपैठ की कोशिश की है। 15 जुलाई को ताइवान ने चीन के 26 सैन्य विमानों, सात नौसेना जहाजों और एक सरकारी जहाज को अपनी सीमा में देखा था। इनमें से 21 विमानों ने मध्य रेखा को पार कर ताइवान के ADIZ में घुसपैठ की थी। इसके जवाब में ताइवान ने अपने मेट्रो स्टेशनों में युद्धाभ्यास भी आयोजित किया था।

वहीं, 20 जून को भी चीन ने 74 फाइटर जेट्स ताइवान की ओर भेजे थे, जिनमें से 61 ने मध्य रेखा को पार किया था। इस प्रकार, 21 जुलाई को तीसरी बार चीन ने इस सीमा को पार कर ताइवान के क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की। इस लगातार बढ़ रहे सैन्य दबाव ने क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे की घंटी बजा दी है।


मध्य रेखा क्यों महत्वपूर्ण है?

मध्य रेखा या मेडियन लाइन ताइवान और चीन के बीच समुद्र में एक काल्पनिक रेखा है, जो दोनों पक्षों के बीच समुद्री सीमाओं को दर्शाती है। इस रेखा को पार करना चीन और ताइवान दोनों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है। ताइवान इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है, जबकि चीन इस रेखा को वैध सीमा के तौर पर नहीं मानता। इसलिए, जब भी चीन की सेना इस रेखा को पार करती है, तो ताइवान तुरंत इसे घुसपैठ मानता है और अपनी रक्षा प्रणाली सक्रिय कर देता है।


आगामी संभावित हमले की आशंका

खुफिया सूत्रों की मानें तो चीन अगले छह महीनों के अंदर ताइवान पर कोई सैन्य कार्रवाई कर सकता है। इस आशंका के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहला कारण चीन की सैन्य ताकत में हो रही तीव्र वृद्धि है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अपनी ताकत और युद्ध तैयारी को साल 2027 तक पूरी तरह मजबूत करने की योजना बना रही है। साल 2027 चीन के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि यह साल पीएलए की 100वीं वर्षगांठ का वर्ष है। इस अवसर पर चीन अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए ताइवान पर आक्रमण कर सकता है।

ताइवान और अमेरिका दोनों के अधिकारियों ने भी यह भविष्यवाणी की है कि 2027 में चीन के आक्रमण की संभावना बहुत अधिक है। इस बीच, अमेरिका ने ताइवान को अपने सैन्य और तकनीकी सहायता जारी रखी है ताकि ताइवान अपनी रक्षा कर सके।


अमेरिका का रुख

अमेरिका की भूमिका इस पूरे विवाद में बेहद अहम है। अमेरिका ने ताइवान को कई सैन्य उपकरण और टैंकों की आपूर्ति की है, जिससे ताइवान की रक्षा क्षमता बढ़ी है। हालांकि, अमेरिका लगातार यह कहता रहा है कि वह ताइवान की संप्रभुता को लेकर “एक-China” नीति का सम्मान करता है, लेकिन साथ ही ताइवान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध भी है।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक बयान में दावा किया है कि उनके कार्यकाल में ताइवान पर कोई आक्रमण नहीं होगा। उन्होंने चीन के साथ कूटनीतिक बातचीत और सैन्य संतुलन को बनाए रखने की बात कही है। इसके बावजूद क्षेत्र में तनाव बढ़ता ही जा रहा है।


क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव

ताइवान का भौगोलिक और आर्थिक महत्व वैश्विक स्तर पर अत्यधिक है। ताइवान दुनिया के प्रमुख सेमीकंडक्टर चिप्स निर्माता देशों में से एक है। यहां बनने वाले सेमीकंडक्टर चिप्स का उपयोग मोबाइल फोन, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल और अन्य तकनीकी उपकरणों में किया जाता है। इसलिए ताइवान में किसी भी तरह का सैन्य संघर्ष वैश्विक सप्लाई चेन को बाधित कर सकता है और इससे विश्व अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

इसके अलावा, चीन और ताइवान के बीच किसी भी बड़े सैन्य संघर्ष से क्षेत्रीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है, जिससे पड़ोसी देशों जैसे जापान, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस पर भी असर पड़ेगा।


निष्कर्ष

चीन और ताइवान के बीच तनाव फिलहाल सबसे तेज गति से बढ़ रहा है। लगातार हो रही चीन की घुसपैठें और ताइवान की सशक्त जवाबी कार्रवाई इस क्षेत्र की जटिलता को दर्शाती हैं। आगामी छह महीने बेहद अहम हैं क्योंकि चीन की सैन्य तैयारियां जोरों पर हैं और ताइवान तथा अमेरिका भी अपने बचाव को मजबूत कर रहे हैं।

यह वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह इस संकट को शांति और कूटनीतिक प्रयासों के जरिए हल करने में मदद करे ताकि पूर्वी एशिया में स्थिरता बनी रहे और वैश्विक आर्थिक व्यवस्था सुरक्षित रह सके। फिलहाल, दुनिया की नजरें इस छोटे से द्वीप और उसके आस-पास के तनावपूर्ण समुद्री इलाकों पर टिकी हुई हैं।


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