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क्या ब्लड मनी के बिना बच सकती है निमिषा प्रिया की जान? बचाव के कितने और कौन-कौन से रास्ते

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Posted On:Tuesday, July 15, 2025

यमन में फांसी की सजा पाए केरल की नर्स निमिषा प्रिया की जिंदगी को बचाने के लिए संघर्ष अंतिम दौर में पहुंच चुका है। 16 जुलाई, बुधवार को निमिषा को यमन में फांसी दी जानी है। पिछले एक साल से निमिषा की मां प्रेमकुमारी यमन में बेटी की जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। साथ ही ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ भी इसके लिए सक्रिय है। हालांकि सबसे बड़ा रास्ता, जिसे ‘ब्लड मनी’ कहा जाता है, अभी तक फाइनल नहीं हो पाया है। तलाल अब्दो महदी के परिवार ने 10 लाख डॉलर (लगभग 8.5 करोड़ रुपये) की ब्लड मनी की पेशकश स्वीकार नहीं की है, और सितंबर 2024 के बाद से इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है।

ब्लड मनी क्या है और क्यों अहम है?

इस्लामी शरिया कानून के अनुसार ब्लड मनी, जिसे दियाह भी कहा जाता है, मुआवजे का वह प्रावधान है जिसके जरिए किसी हत्या के मामले में मृतक के परिवार को आर्थिक मुआवजा देकर फांसी की सजा टाली जा सकती है। यदि तलाल अब्दो महदी के परिवार ने इस मुआवजे को स्वीकार कर लिया होता, तो निमिषा को माफी मिल सकती थी। यही सबसे व्यवहारिक और कानूनी तरीका है निमिषा की जान बचाने का।

2017 में निमिषा ने तलाल की हत्या की थी, और आरोप है कि उन्होंने उसके शव के टुकड़े कर टैंक में डाल दिए। 2020 में यमन की कोर्ट ने निमिषा को इस जुर्म में फांसी की सजा सुनाई थी। ब्लड मनी के बिना बचने की संभावना बेहद कम है, क्योंकि यमन में शरिया कानून का सख्ती से पालन होता है।

ब्लड मनी के बिना बचाने के विकल्प

ब्लड मनी के अलावा निमिषा की जान बचाने के लिए कई अन्य रास्ते भी theoretically मौजूद हैं, जैसे कूटनीतिक हस्तक्षेप, राष्ट्रपति का क्षमादान, कानूनी अपील, अंतरराष्ट्रीय दबाव और मानवीय आधार पर माफी की मांग। लेकिन यमन के राजनीतिक हालात और कड़े कानूनी सिस्टम के कारण इन विकल्पों की सफलता बहुत कम लगती है।

  • कूटनीतिक प्रयास: भारत सरकार यमन से कूटनीतिक स्तर पर संपर्क में है, लेकिन यमन में गृहयुद्ध और हूती विद्रोहियों का प्रभाव होने के कारण राजनयिक हस्तक्षेप सीमित प्रभावी साबित हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार ने कहा है कि वे प्रयास जारी रखेंगे, लेकिन यमन ने फांसी के फैसले को “नाक का सवाल” बना रखा है।

  • राष्ट्रपति का क्षमादान: यमन के राष्ट्रपति रशद अल-अलीमी के पास क्षमादान देने का अधिकार है, जो जनवरी 2025 में निमिषा की फांसी को मंजूरी भी दे चुके हैं। क्षमादान तभी दिया जाता है जब मजबूत राजनयिक या मानवीय आधार हो, फिलहाल इसके कोई संकेत नहीं मिले हैं।

  • अंतरराष्ट्रीय दबाव: मानवाधिकार संगठन और ‘सेव निमिषा प्रिया’ जैसी संस्थाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही हैं। परंतु यमन की राजनीतिक अस्थिरता के चलते यह प्रयास फिलहाल सीमित प्रभावी हैं।

  • कानूनी प्रक्रिया: निमिषा की आखिरी कानूनी अपील नवंबर 2023 में यमन की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल द्वारा खारिज कर दी गई थी। भारत में सुप्रीम कोर्ट में 18 जुलाई को सुनवाई होनी है, परंतु वहां भी कहा गया कि यह यमन का निजी मामला है। इसलिए कानूनी रास्ते से बचना मुश्किल ही है।

  • मानवीय भूल: निमिषा के परिवार और समर्थक मानवीय आधार पर माफी की अपील कर रहे हैं कि यह हत्या जानबूझकर नहीं हुई, बल्कि गलती से ओवरडोज़ हुई। हालांकि, पीड़ित परिवार ने अभी तक ब्लड मनी की पेशकश को स्वीकार नहीं किया है, जिससे मानवीय भूल को भी गंभीरता से लेने की संभावना कम है।

संघर्ष जारी है

निमिषा की मां प्रेमकुमारी और सामाजिक कार्यकर्ता सैमुअल जेरोम पीड़ित परिवार को ब्लड मनी स्वीकार करने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन परिवार की जिद के कारण मामला जटिल होता जा रहा है। अगर ब्लड मनी स्वीकार नहीं होती है तो बाकी सारे विकल्प लगभग बंद समझे जा सकते हैं।

निमिषा के केस ने न केवल एक व्यक्ति की जान की लड़ाई का रूप लिया है, बल्कि विदेशों में फंसे भारतीयों की सुरक्षा और कानूनी संरक्षण की भी गंभीर चुनौती पेश की है। यह मामला यह दर्शाता है कि देश के बाहर फंसे नागरिकों के लिए किस हद तक कूटनीतिक प्रयास जरूरी हैं।

निष्कर्ष

निमिषा प्रिया को फांसी से बचाने की आखिरी उम्मीद ब्लड मनी है, जो अभी तक पूरी तरह से सफल नहीं हो सकी है। इसके अलावा मानवीय आधार, कानूनी अपील और कूटनीतिक प्रयास सीमित और कमजोर साबित हो रहे हैं। यमन के राजनीतिक हालात और कड़े कानून इस मामले को और भी जटिल बना रहे हैं।

अगले कुछ दिनों में यह तय होगा कि क्या निमिषा की जान बच पाएगी या वह यमन की सजा का शिकार हो जाएंगी। फिलहाल परिवार, सरकार और मानवाधिकार संगठन हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह इस नाजुक स्थिति से निकल कर उन्हें न्याय मिल सके।


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