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अमेरिकी डॉलर के खिलाफ चीन-रूस-भारत की बड़ी चाल! अब बढ़ेगी टैरिफ लगाने वाले ट्रंप की टेंशन

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Posted On:Thursday, October 9, 2025

भारत द्वारा रूस से खरीदे जा रहे कच्चे तेल के भुगतान में अब अमेरिकी डॉलर की जगह चीनी मुद्रा 'यूआन' का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह महत्वपूर्ण बदलाव ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत पर टैरिफ लगाने की धमकी दे रहे हैं और ब्रिक्स देशों की साझा करेंसी योजना की आलोचना कर रहे हैं। इस कदम को अमेरिकी डॉलर की वैश्विक प्रभुत्व को मिली एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, रूस से तेल आयात करने वाले भारतीय रिफाइनर्स को रूसी आपूर्तिकर्ताओं (ट्रेडर्स) ने हाल ही के शिपमेंट्स का भुगतान अमेरिकी डॉलर या संयुक्त अरब अमीरात (UAE) दिरहम के बजाय यूआन में करने को कहा है।

IOC ने शुरू किया यूआन में भुगतान

परंपरागत रूप से, अंतर्राष्ट्रीय तेल व्यापार का भुगतान मुख्य रूप से अमेरिकी डॉलर में होता रहा है। लेकिन पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों और रूबल-आधारित भुगतान प्रणाली की जटिलताओं के कारण, वैकल्पिक और सुविधाजनक मुद्रा की आवश्यकता महसूस हुई। इस संदर्भ में, यूआन भुगतान का एक व्यावहारिक विकल्प बनकर उभरा है। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि देश की सबसे बड़ी सरकारी तेल कंपनी, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने कम से कम दो से तीन रूसी तेल शिपमेंट्स का भुगतान यूआन में किया है। यह तथ्य ट्रंप प्रशासन के लिए विशेष रूप से असहज हो सकता है, जो वैश्विक व्यापार में डॉलर की सर्वोच्चता बनाए रखने पर जोर देते रहे हैं।

चीन-भारत तनाव के बावजूद यूआन का पुनरुत्थान

यह पहली बार नहीं है जब भारत ने यूआन में तेल भुगतान किया है। 2023 में भी भारतीय सरकारी कंपनियों ने कुछ शिपमेंट्स के लिए यूआन का उपयोग किया था। हालांकि, भारत-चीन संबंधों में तनाव बढ़ने के बाद इस प्रथा पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी गई थी। ताज़ा घटनाक्रम संकेत देता है कि भारत ने अब यूआन में भुगतान की अनुमति को आंशिक रूप से बहाल कर दिया है। निजी तेल कंपनियाँ पहले से ही यूआन का इस्तेमाल कर रही थीं, लेकिन सरकारी रिफाइनर्स के इस बदलाव में शामिल होने से यह एक बड़ा संकेत बन गया है। यह निर्णय न केवल भारत की व्यापारिक लचीलेपन को दर्शाता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमेरिका की मुद्रा की पकड़ को कमजोर करने में भी भूमिका निभाता है। यह कदम ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों पर घरेलू मुद्राओं में व्यापार करने की बढ़ती मांग को भी बल देता है।


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