पुणे न्यूज डेस्क: पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ में पर्यावरणीय हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं, और ताजा ईएसआर रिपोर्टों ने इन शहरों में प्रदूषण की गंभीरता को सामने ला दिया है। बढ़ते शहरीकरण, वाहनों की संख्या में इज़ाफा, बेतरतीब निर्माण कार्य और पर्यावरणीय नियमों के कमजोर अमल ने वायु और जल दोनों की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर डाला है। पुणे में जहां पहले 'अच्छी हवा' वाले दिनों की संख्या कहीं ज्यादा थी, वहीं अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि ‘मध्यम’ और ‘खराब’ श्रेणी वाले दिनों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।
पिंपरी-चिंचवाड़ में ध्वनि प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन चुका है, खासकर तलवड़े, भोसरी एमआईडीसी और मेट्रो कॉरिडोर जैसे इलाकों में। इसके अलावा, इन इलाकों की नदियाँ—पवना, इंद्रायणी और मूला—भी प्रदूषण के बोझ तले दबती जा रही हैं। अनुपचारित सीवेज, घरेलू कचरे और औद्योगिक अपशिष्टों के कारण इन नदियों का जल अब न सिर्फ पीने के लायक नहीं रहा, बल्कि जलीय जीवन के लिए भी खतरा बन गया है। सीपीसीबी के मानकों के अनुसार इन नदियों की स्थिति बेहद खराब मानी गई है।
विभिन्न क्षेत्रों में किए गए मौसमी विश्लेषण बताते हैं कि गर्मियों में जल स्रोतों का प्रदूषण स्तर और बढ़ जाता है। उदाहरण के तौर पर, पवना नदी में बीओडी और सीओडी के स्तर खतरे की घंटी बजा रहे हैं। इंद्रायणी में रासायनिक प्रदूषण की मात्रा चिंताजनक है, जबकि मूला तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में है लेकिन मानसून के दौरान उसमें भी प्रदूषण के संकेत मिलते हैं। मुथा नदी और पाषाण झील जैसे जलस्रोत भी धीरे-धीरे जहर का रूप लेते जा रहे हैं, जिनके बीओडी और सीओडी के आंकड़े स्वस्थ पारिस्थितिकी के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।
स्थानीय नागरिकों ने भी स्थिति पर चिंता जताई है। नल स्टॉप की निवासी शर्मिला शिरसाट का कहना है कि त्योहारों और निर्माण कार्यों के दौरान तो स्थिति असहनीय हो जाती है। न शोर पर नियंत्रण है, न धूल और धुएं पर। लोगों का कहना है कि उन्हें स्वच्छ हवा और साफ पानी जैसे बुनियादी अधिकारों के लिए भी अब संघर्ष करना पड़ रहा है। विशेषज्ञों ने नगर निगम से अपील की है कि वह प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए ठोस उपाय करे और नियमों के सख्त पालन को सुनिश्चित करे।