पुणे न्यूज डेस्क: पुणे की 19 साल की छात्रा ने सोशल मीडिया पर ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ा एक विवादित पोस्ट शेयर किया, जिसके चलते उनके खिलाफ FIR दर्ज कर दी गई। इस मामले पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया और कहा कि सिर्फ पोस्ट डिलीट करना या माफी मांग लेना FIR खत्म करने का कारण नहीं बन सकता। मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंकड़ की बेंच ने स्पष्ट किया कि पढ़ाई में अच्छा होना या अच्छी स्टूडेंट होना किसी भी केस को स्वतः समाप्त नहीं कर देता।
छात्रा की वकील ने कोर्ट में यह दलील दी कि गिरफ्तारी के बाद छात्रा ने परीक्षा दी और अच्छे अंक हासिल किए, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह FIR रद्द करने का आधार नहीं बन सकता। अदालत ने यह भी कहा कि पोस्ट हटाने से उल्टा मामला और जटिल हो जाता है क्योंकि यह दर्शाता है कि छात्रा को अपनी गलती का एहसास था।
इस मामले में कोर्ट ने सरकारी वकील से केस डायरी मंगवाने के निर्देश दिए और अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद तय की। घटना 7 मई की है, जब छात्रा ने ‘रिफॉर्मिस्तान’ नाम के अकाउंट से भारत सरकार पर पाकिस्तान से युद्ध भड़काने का आरोप लगाते हुए पोस्ट किया था। दो घंटे के भीतर पोस्ट हटा दिया गया, लेकिन FIR दर्ज होने और गिरफ्तारी के बावजूद बाद में छात्रा को जमानत मिल गई।