पुणे न्यूज डेस्क: पुणे के बहुचर्चित पोर्श हादसे में किशोर न्याय बोर्ड ने बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने पुणे पुलिस की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें 17 साल के आरोपी को वयस्क मानकर मुकदमा चलाने की मांग की गई थी। इसका मतलब है कि अब आरोपी पर किशोर कानून के तहत ही सुनवाई होगी। यह मामला मई 2024 में सामने आया था, जब एक तेज रफ्तार पोर्श कार ने दो आईटी प्रोफेशनल्स को टक्कर मार दी थी, जिससे उनकी मौत हो गई थी।
जांच में पता चला कि कार चला रहा किशोर एक बड़े रियल एस्टेट कारोबारी का बेटा है और हादसे के वक्त उसने शराब भी पी रखी थी। इस दुर्घटना के बाद आरोपी को बचाने की कोशिशों के तहत फॉरेंसिक सबूतों से छेड़छाड़ भी की गई। खासकर शराब पीने के सबूत मिटाने के लिए खून के नमूने बदलने का मामला सामने आया, जिससे जांच पर भी सवाल उठे।
इस केस में सिर्फ नाबालिग ही नहीं, बल्कि उसके पिता, डॉक्टरों, अस्पताल स्टाफ और बिचौलियों समेत 10 अन्य लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई चल रही है। इन सभी पर आरोप है कि उन्होंने आरोपी किशोर के खून के सैंपल को उसकी मां के खून से बदलने में मदद की थी, ताकि मेडिकल रिपोर्ट में शराब के प्रमाण न मिलें।
पुलिस ने अदालत से गुहार लगाई थी कि इस अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को वयस्क अपराधी मानकर ट्रायल किया जाए। लेकिन किशोर न्याय बोर्ड ने यह तर्क नहीं माना और कहा कि किशोर को जुवेनाइल कानून के तहत ही ट्रायल का सामना करना होगा। यह मामला देशभर में सुर्खियों में रहा और न्याय प्रणाली की निष्पक्षता तथा रसूख के दुरुपयोग को लेकर कई सवाल खड़े किए।