मुंबई, 01 दिसम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। भारतीय रुपया डॉलर के सामने अब तक के सबसे कमजोर स्तर पर जा पहुंचा। इंट्रा-डे ट्रेडिंग में रुपया 34 पैसे गिरकर ₹89.79 प्रति डॉलर तक फिसल गया, जो दो हफ्ते पहले बने इसके पुराने रिकॉर्ड लो 89.66 से भी नीचे है। इससे पहले 21 नवंबर को भी रुपया 98 पैसे टूटा था। मुद्रा पर यह दबाव घरेलू शेयर बाजार की गिरावट, विदेशी निवेशकों द्वारा लगातार निकासी और डॉलर की वैश्विक मजबूती की वजह से बढ़ा है। रुपये की शुरुआत आज 89.45 पर हुई थी, जबकि बीते शुक्रवार को यह 9 पैसे टूटकर 89.45 पर बंद हुआ था। साल 2025 में अब तक रुपये की कमजोरी 4.77% तक बढ़ चुकी है। 1 जनवरी को जहां डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 85.70 थी, वह अब 89.79 तक जा पहुंची है।
गिरता रुपया क्या असर लाता है?
रुपए का कमजोर होना सीधे-सीधे इम्पोर्ट को महंगा बनाता है। तेल, सोना, इलेक्ट्रॉनिक्स और दूसरे विदेशी सामानों की कीमतें बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। विदेश में पढ़ने और घूमने वाले भारतीयों के लिए भी खर्च बढ़ जाता है। पहले जहां 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाता था, वहीं अब उसी 1 डॉलर के लिए लगभग 89.79 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे पढ़ाई, रहन-सहन और ट्रैवल की लागत बढ़ती जाती है।
रुपये पर दबाव क्यों?
डॉलर इंडेक्स में मजबूती (99.50 तक पहुंचना), कच्चे तेल के दामों में उछाल (ब्रेंट 63.60 डॉलर प्रति बैरल) और इंपोर्टर्स की बढ़ी डॉलर मांग ने रुपया नीचे धकेला। साथ ही, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) ऊंची वैल्यूएशन के चलते भारतीय कंपनियों में अपने हिस्से बेच रहे हैं, जिससे लगातार आउटफ्लो हो रहा है। ऑयल एवं गोल्ड की खरीद, कॉर्पोरेट और सरकारी री-पेमेंट्स ने भी दबाव बढ़ाया है। अमेरिका के साथ ट्रेड टेंशंस और टैरिफ इंपोज़िशन ने भी बातचीत को धीमा कर दिया है। हालांकि, कॉमर्स सेक्रेटरी राजेश अग्रवाल ने उम्मीद जताई है कि 2025 के अंत तक एक व्यापक ट्रेड फ्रेमवर्क तैयार हो सकता है, जिससे भारतीय एक्सपोर्टर्स को फायदा मिलेगा।
बाजार पर असर
रुपए की कमजोरी ने घरेलू शेयर बाजार को भी प्रभावित किया। सेंसेक्स 64 अंक गिरकर 85,641.90 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 27 अंक टूटकर 26,175.75 पर बंद हुआ। पिछले सत्र में FIIs ने 3,795.72 करोड़ रुपए की भारी बिकवाली की थी।
रुपए में गिरावट के फायदे और नुकसान -
| फायदे |
नुकसान |
| एक्सपोर्टर्स को ज्यादा मुनाफा |
महंगाई बढ़ेगी |
| पर्यटकों के लिए भारत सस्ता |
तेल- सोना महंगे |
| मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा |
विदेश में पढ़ाई-घूमना महंगा |
| डॉलर भेजने पर ज्यादा रुपए |
विदेशी निवेश घटेगा |
एक्सपर्ट्स की राय
विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी आउटफ्लो, ऑयल-गोल्ड बायिंग और री-पेमेंट्स की वजह से रुपया शॉर्ट-टर्म में दबाव में रह सकता है। हालांकि, ट्रेड डील में प्रगति और ग्लोबल संकेतों में सुधार से भविष्य में कुछ राहत मिल सकती है।
करेंसी की वैल्यू कैसे तय होती है?
किसी भी मुद्रा की कीमत फॉरेन रिजर्व, बाज़ार में मांग-आपूर्ति, ग्लोबल इकनॉमिक माहौल और डॉलर की पोज़िशन पर निर्भर करती है। यदि देश के पास पर्याप्त डॉलर रिजर्व है तो मुद्रा स्थिर रहती है, लेकिन रिजर्व घटने से करेंसी कमजोर हो जाती है। मौजूदा समय में भारत का रुपया फ्लोटिंग रेट सिस्टम के तहत चलता है, जिसका अर्थ है कि बाज़ार स्थितियाँ इसकी कीमत तय करती हैं।
मुख्य जानकारी -
| श्रेणी |
मुख्य जानकारी |
| रुपये का नया स्तर |
₹89.79 प्रति डॉलर (अब तक का सबसे निचला स्तर) |
| 2025 में कुल गिरावट |
4.77% (85.70 से 89.79) |
| गिरावट के मुख्य कारण |
डॉलर की मजबूती, FPIs आउटफ्लो, ऑयल-गोल्ड बायिंग, उच्च वैल्यूएशन, ट्रेड टेंशन |
| डॉलर इंडेक्स |
99.50 |
| क्रूड ऑयल कीमत |
63.60 डॉलर/बैरेल (ब्रेंट) |
| मार्केट पर असर |
सेंसेक्स -64 अंक, निफ्टी -27 अंक |
| FII नेट सेलिंग |
₹3,795.72 करोड़ |
| असर किन पर पड़ेगा |
इम्पोर्ट, विदेश यात्रा, विदेश में पढ़ाई, पेट्रोल-डीजल, गोल्ड |
| संभावित राहत |
2025 के अंत तक प्रस्तावित ट्रेड फ्रेमवर्क |